प्राणायाम , प्राणायाम के सामान्य नियम,भस्त्रिका,कपालभाति,शीतली,सीत्कारी,भ्रामरी,अनुलोम - विलोम,उज्जायी प्राणायाम के लाभ...
प्राणायाम योग का चौथा अंग है यह दो शब्दों से मिलकर बना है प्राण और आयाम प्राण का अर्थ है शरीर में संचालित होने वाली वाइफ जिसे जीवन शक्ति कहते हैं तथा आयाम का अर्थ है नियंत्रण प्राणायाम का अर्थ हुआ स्वास प्रवास प्रक्रिया को नियंत्रण करना प्राण के अनियंत्रित होने से शरीर के रोग को समाप्त किया जा सकता है !
प्राणायाम के द्वारा रोगों से बचा जा सकता है इससे तन-मन स्वस्थ रहता है
प्राणायाम के सामान्य नियम -
प्राणायाम करने से पूर्व नियमों का पालन व सावधानियां अवश्यक होती हैं -
- प्राणायाम को प्रातः काल सूर्योदय के समय व सायंकाल सूर्यास्त के समय करना ज्यादा उपयुक्त है ।
- स्वच्छ हवादार व खुले स्थान पर ही बैठकर प्राणायाम करना चाहिए अथवा नदी तालाब बगीचा तथा उद्यान आदि के समीप अभ्यास करना सबसे उपयुक्त है परंतु बैठने का स्थान ऊंचा नीचा ना होकर समतल होना चाहिए ।
- शहरों में जहां प्रदूषण का अधिक प्रभाव होता है वहां प्राणायाम करने से पहले ही जी अगरबत्ती या धूप से उस स्थान को संबंधित करने से ज्यादा लाभ प्राप्त कर सकते हैं!
- प्राणायाम हेतु बैठने के लिए कंबल दरी एवं चादर आदि नरम व सात्विक वस्तुओं का प्रयोग करें ।
- प्राणायाम के लिए प्रयुक्त आसन विद्युत का कुचालक होना चाहिए ।
- प्राणायाम करते समय अपनी गर्दन रीड की हड्डी छाती एवं कमर को सीधा रखते हुए जिस आसन में आप अधिक समय तक बैठ सकते हैं उस में बैठकर प्राणायाम करना चाहिए ।
- यदि पैर मोड़कर बैठने में कोई समस्या है तो कुर्सी पर बैठकर प्राणायाम कर सकते हैं ध्यान रहे रीड की हड्डी सीधी हो खड़े होकर अथवा घूमते फिरते प्राणायाम नहीं करना चाहिए ।
- स्वास सदा नाक से ही लें इससे श्वास शुद्ध होकर अंदर जाता है मुंह से सांस ना ले सामान्य अवस्था में भी नाक से सांस लेना चाहिए अति धीरे-धीरे या अति बलपूर्वक प्राणायाम नहीं करना चाहिए ।
- प्राणायाम करने वाले बच्चों को अपने आहार का विशेष ध्यान रखना चाहिए उन्हें पिज्जा बर्गर मैगी चाऊमीन आदि फास्ट फूड व कोल्ड ड्रिंक आदि नुकसानदायक पेड़ों को नहीं लेना चाहिए
- बच्चों को सदैव सात्विक एवं चिकनाई युक्त आहार लेना चाहिए जैसे फल सब्जियां दूध घी आदि ।
भस्त्रिका प्राणायाम -
भस्त्रिका का अर्थ है धोकनी , इस प्राणायाम को भस्मिका इसलिए कहते हैं क्योंकि इसमें लोहार की ढोकनी के समान तीव्र और निरंतर गति से स्वास - प्रशवास जाता है ।
आइए करके सीखते हैं -
- सबसे पहले किसी भी धनात्मक आसन जैसे पद्मासन सुखासन आदि में सुविधाजनक बैठ जाएं ।
- अब दोनों ना सिखाओ से सांसो को पूरा भरे फिर सांस को बाहर भी पूरी शक्ति से छोड़ना है इस क्रिया को ही भस्मिका प्राणायाम कहते हैं ।
- इस प्राणायाम को अपने शरीर की क्षमता के अनुसार तीन प्रकार से किया जा सकता है मंद गति से ,मध्यम गति से ,एक तीव्र गति से ! जिन बच्चों के फेफड़े और हृदय कमजोर हो उन्हें मंद गति से यह प्राणायाम करना चाहिए इस प्राणायाम को 5 मिनट तक करें ।
भस्त्रिका प्राणायाम के लाभ -
कपालभाति प्राणायाम -
आओ करके सीखते हैं -
- सबसे पहले पद्मासन या सुखासन की स्थिति में बैठ जाएं फिर आंखें बंद रखें ।
- बच्चों इस बात का खास ध्यान रखो कि कपालभाती में श्वास को बाहर छोड़ने पर ही पूरा ध्यान देना है । सहज रूप से जितना स्वस अंदर आ जाता है उस सास को बलपूर्वक बाहर छोड़ते हैं ।
- ऐसा करने से तुम्हारा उधर भाग भी अंदर बाहर की ओर गतिमान होता है जिससे शरीर के अंदर के अंगों की मालिश हो जाती है ।
- इस प्राणायाम को करते समय मन में अच्छे अच्छे विचार भरे जैसे ही मैं सांस छोड़ रहा हूं मेरे शरीर के रोग भी बाहर निकल रहे हैं आदि ।
- इस प्राणायाम को कम से कम 5 मिनट अवश्य करना चाहिए जो बच्चों की तीव्रता से श्वास को बाहर ना सके वह सस्ता में अपनी क्षमता के अनुसार अभ्यास करें ।
कपालभाति प्राणायाम करने के लाभ -
शीतली प्राणायाम -
आइए शीतली प्राणायाम करना सीखें -
- सबसे पहले पद्मासन या सुखासन में बैठ जाओ ।
- अब जीव को बाहर निकालो एवं उसे एक नलिका या गोल ट्यूब की तरह मोड़ लो ।
- जीभ से धीरे-धीरे सांस लेकर फेफड़ों को पूर्ण रूप से वायु से भरो ।
- इसी स्थिति में कुछ क्षण श्वास को रोककर रखो ।
- अब नासिका से धीरे-धीरे श्वास को बाहर छोड़ो । सास को छोड़ते समय जीभ भीतर कर लो ।
- जीभ बाहर निकाल कर ट्यूब की आकृति बनाओ एवं फेफड़ों को धीरे-धीरे श्वास लेते हुए भरो । अब जीभ भीतर कर नासिका से श्वास छोड़ो ।
शीतली प्राणायाम के लाभ -
सीत्कारी प्राणायाम
आइए करके सीखते हैं सीत्कारी प्राणायाम-
- बच्चों सबसे पहले ध्यान के किसी भी आसन जैसे पद्मासन सुखासन आदि में बैठ जाओ ।
- अब जीभ को तालू में लगाकर ,दांतो को एकदम सटा कर होठों को खोल कर रखें ।
- अब धीरे-धीरे सी - सी की आवाज करते हुए मुंह से स्वास लो... और... गहरी सांस लेकर फेफड़ों को पूरा भर लो ।
- अब नासिका से धीरे-धीरे श्वास को बाहर छोड़ो स्वास को छोड़ते समय मुख को बंद कर लो ।
- इस क्रिया को 8-10 बार तक दोहराव शीतकाल में इस प्राणायाम का अभ्यास कम करना चाहिए।
सीत्कारी प्राणायाम करने के लाभ -
भ्रामरी प्राणायाम
इस प्राणायाम में भ्रमण अर्थात भंवरे के समान गुंजन किया जाता है इसलिए इस प्राणायाम को भ्रामरी प्राणायाम कहते हैं ।
आइए करके सीखते हैं -
- बच्चों को सबसे पहले ध्यान के किसी भी आसन जैसे पद्मासन सुखासन आदमी बैठो ।
- स्वास फेफड़ों से भरकर हाथों के अंगूठे से कानून को बंद करो मध्यमा उंगलियों को नाक के मूल में आंख के पास रखो ।
- इसके बाद आंखें बंद करो अब भ्रमण के समान गुंजन करते हुए धीरे-धीरे श्वास बाहर की ओर छोड़ो ।
- भ्रमर का गुंजन अमं... करते हुए मुंह खुला नहीं रहना चाहिए सांस छोड़ने तक अमं... की आवाज एक समान गति से हो ।
भ्रामरी प्राणायाम करने के लाभ -
पढ़ाई में मन लगाने के लिए यह प्राणायाम लाभदायक है
स्मरण शक्ति और बुद्धि का विकास करता है ।
सिरदर्द नींद ना आना और मानसिक तनाव आदि में आराम देता है ।
अनुलोम - विलोम प्राणायाम
इस प्राणायाम में नाक के एक शिविर में स्वस लेते हैं और नाक के दूसरे क्षेत्र में स्वास्थ्य को छोड़ देते हैं इसलिए इस प्राणायाम को अनुलोम विलोम प्राणायाम कहते हैं ।
आइए करके सीखते है -
सबसे पहले ध्यान के किसी भी आसन जैसे पद्मासन या सुखासन में बैठते हैं और आंखें बंद रखते हैं अब दाईं हाथ के अंगूठे से दाएं नाक को बंद कर के बाईं ओर से सांस लेकर दाईं और से श्वास बाहर छोड़ते हैं और फिर बाईं नाक को बंद करके दाईं उसे श्वास लेकर नाक के बाईं उसे श्वास बाहर छोड़ देते हैं । नाक के जिस क्षेत्र में श्वास लें दूसरे छिद्र से सांस छोड़ दे यानी जहां से स्वास छोड़ें वहीं से दोबारा श्वास ले इस प्राणायाम को कम से कम 5 मिनट लगातार करना चाहिए ।
अनुलोम विलोम प्राणायाम करने के लाभ -
शरीर की समस्त नारियां शुद्ध होती हैं जिससे शरीर स्वस्थ सुंदर और बलवान बनता है हृदय एवं फेफड़ों स्वस्थ एवं निरोगी बनते हैं मस्तिष्क की सक्रियता बढ़ती है एकाग्रता एवं स्मरण शक्ति बढ़ती है ।
उज्जायी प्राणायाम
उज्जायी प्राणायाम करने के तरीके -
उज्जायी प्राणायाम करने के लाभ -
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